इतना तो है यक़ीन लौटेगी,
कल की दुनिया हसीन लौटेगी।
वो ही लौटेगी कल फ़िज़ा फिरसे,
वैसी ही सरज़मीन लौटेगी।
ख़त्म होने से तो रही दुनिया,
है ये ख़ासी ज़हीन, लौटेगी।
ज़िंदगी ज़िंदगी ही रहनी है,
कितनी भी हो विलीन, लौटेगी।
ज़िंदगी में घुलेगी ख़ुश्बू फिर,
होके ताज़ातरीन लौटेगी।
पाँव ताकत से जिनपे टिक पाएँ,
फिर वो अपनी ज़मीन लौटेगी।
थक चुकी है अभी ये दुनिया, पर
कल ही बनकर मशीन लौटेगी।
कल भी थी बेहतरीन ही दुनिया,
होके फिर बेहतरीन लौटेगी।
-कमलेश भट्ट कमल
No comments:
Post a Comment