Monday, April 25, 2022

टूटेगा ही

टूटेगा ही, इतनी ताक़त थोड़ी  है,
दुख तो आख़िर दुख है, पर्वत थोड़ी है !

जीवन देकर ख़ुद ही ले ले  आखिर क्यों,
देने वाले की यह नीयत थोड़ी है !

सागर से धरती तक हलचल ही हलचल,
दुनिया में हर पल सब संयत थोड़ी है !

जीवन जीने का ही नाम तो है आख़िर,
जीवन ख़ुद में कोई आफ़त थोड़ी है ! 

स्थितियाँ ही कुछ ऐसी हैं वर्ना तो,
झुकना-थकना मन की आदत थोड़ी है ! 

धन-दौलत की होती है क़ीमत लेकिन,
जीवन से बढ़कर वह क़ीमत थोड़ी है।

-कमलेश भट्ट कमल

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