Monday, April 25, 2022

ज़रा-सा आदमी होना

ज़रा-सा आदमी होना ज़रा-सा देवता  होना,
कोई क्या छीन सकता है मेरा अपना भला होना !

उसे शाख़ों से पत्तों से जड़ों से भी निभाना है,
बहुत  आसान भी होता नहीं कोई  तना होना !

सँभल कर सीढ़ियाँ चढ़ना कि छूना नभ सँभल कर ही,
तमाम आँखों में चुभ जाता है थोड़ा-सा  बड़ा होना ! 

गुमान इतना है अपने जींस पर इंसान को लेकिन,
कहाँ वह जानता है पेड़-पौधों सा नया  होना। 

ज़रा-सा ही लचीलापन बचा लेता है आँधी से,
नहीं तो जानते हैं पेड़ भी तन कर खड़ा होना। 

अगर मुश्किल समय में काम ख़ुद के भी नहीं आए,
तो  फिर किस काम की है ढेर सारी संपदा होना।

-कमलेश भट्ट कमल

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