ज़िंदगी का ताप लाएँगे कहाँ से,
शेर में जान आप लाएँगे कहाँ से ?
जिसको देखा और भोगा ही नहीं है,
ख़ुद में वह संताप लाएँगे कहाँ से ?
मन का बौनापन नहीं देता दिखाई,
उसकी ख़ातिर नाप लाएँगे कहाँ से ?
कितने सारे आतताई हैं यहाँ पर,
इतने सारे शाप लाएँगे कहाँ से ?
आपके अंदर नहीं पैवस्त है जो,
उसकी मुख पर छाप लाएँगे कहाँ से ?
कुछ तो खौले आपके भीतर भी वर्ना,
हौसलों की भाप लाएँगे कहाँ से ?
-कमलेश भट्ट कमल
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