दूध को बस दूध ही, पानी को पानी लिख सके
सिर्फ कुछ ही वक़्त की असली कहानी लिख सके।
झूठ है जिसका शगल, दामन लहू से तर-ब-तर
कौन है जो नाम उसका राजधानी लिख सके।
उम्र लिख देती है चेहरों पर बुढ़ापा एक दिन
कोई-काई ही बुढ़ापे में जवानी लिख सके।
उसको ही हक़ है कि सुबहों से करे कोई सवाल
जो किसी के नाम खुद़ शामें सुहानी लिख सके।
मुश्किलों की दास्ताँ के साथ ये अक्सर हुआ
कुछ लिखी कागज़ पे हमने, कुछ ज़बानी लिख सके।
मौत तो कोई भी लिख देगा किसी के भाग्य में
बात तो तब है कि कोई ज़िन्दगानी लिख सके।
-कमलेश भट्ट कमल
सिर्फ कुछ ही वक़्त की असली कहानी लिख सके।
झूठ है जिसका शगल, दामन लहू से तर-ब-तर
कौन है जो नाम उसका राजधानी लिख सके।
उम्र लिख देती है चेहरों पर बुढ़ापा एक दिन
कोई-काई ही बुढ़ापे में जवानी लिख सके।
उसको ही हक़ है कि सुबहों से करे कोई सवाल
जो किसी के नाम खुद़ शामें सुहानी लिख सके।
मुश्किलों की दास्ताँ के साथ ये अक्सर हुआ
कुछ लिखी कागज़ पे हमने, कुछ ज़बानी लिख सके।
मौत तो कोई भी लिख देगा किसी के भाग्य में
बात तो तब है कि कोई ज़िन्दगानी लिख सके।
-कमलेश भट्ट कमल
1 comment:
कमल जी,
नमस्कार!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ले है। बधाई!
कृपया 'भारत-दर्शन' पत्रिका भी देखें:
http://www.bharatdarshan.co.nz
न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित इस पत्रिका के लिए आपकी रचनाएं सादर-आमंत्रित।
साधुवाद।
रोहित कुमार 'हैप्पी'
संपादक, भारत-दर्शन
न्यूज़ीलैंड।
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