Sunday, January 28, 2007

एक चादर-सी

एक चादर-सी उजालों की तनी होगी
रात जाएगी तो खुलकर रोशनी होगी।

सिर्फ वो साबुत बचेगी ज़लज़लों में भी
जो इमारत सच की इंर्टों से बनी होगी।

आज तो केवल अमावस है, अँधेरा है
कल इसी छत पर खुली-सी चाँदनी होगी।

जैसे भी हालात हैं हमने बनाये हैं
हमको ही जीने की सूरत खोजनी होगी।

बन्द रहता है वो ख़ुद में इस तरह अक्सर
दोस्ती होगी न उससे दुश्मनी होगी।

-कमलेश भट्ट कमल

No comments: