Sunday, January 28, 2007

प्यास से जो खुद़

प्यास से जो खुद़ तड़प कर मर चुकी है
वह नदी तो है मगर सूखी नदी है।

तोड़कर फिर से समन्दर की हिदायत
हर लहर तट की तरफ को चल पड़ी है।

असलहा, बेरोज़गारी और व्हिस्की
ये विरासत नौजवानों को मिली है।

जो नज़र की ज़द में है वो सच है, लेकिन
एक दुनिया इस नज़र के बाद भी है।

जुल़्म की हद पर भी बस ख़मोश रहना
ये कोई जीना नहीं, ये खुद़कुशी है।

-कमलेश भट्ट कमल

No comments: