अपना सुख, अपनी चुभन कब तक चले
ख़ुद में ही रहना मगन कब तक चले।
जुल़्म पर हम चुप हैं, चुप हैं आप भी
देखना है ये चलन कब तक चले।
कोशिशें तो खत्म करने की हुईं
अब रही क़िस्मत वतन कब तक चले।
वो मरा था भूख से या रोग से
देखिए इस पर `सदन' कब तक चले।
जिस्म से चादर अगर छोटी है तो
जिस्म ढँकने का जतन कब तक चले।
जिनकी आँखों में बसी हों मंज़िलें
उनके पाँवों में थकन कब तक चले।
-कमलेश भट्ट कमल
ख़ुद में ही रहना मगन कब तक चले।
जुल़्म पर हम चुप हैं, चुप हैं आप भी
देखना है ये चलन कब तक चले।
कोशिशें तो खत्म करने की हुईं
अब रही क़िस्मत वतन कब तक चले।
वो मरा था भूख से या रोग से
देखिए इस पर `सदन' कब तक चले।
जिस्म से चादर अगर छोटी है तो
जिस्म ढँकने का जतन कब तक चले।
जिनकी आँखों में बसी हों मंज़िलें
उनके पाँवों में थकन कब तक चले।
-कमलेश भट्ट कमल
No comments:
Post a Comment